पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में शिक्षा से जुड़े एक संवेदनशील मुद्दे पर नया प्रस्ताव रखा है। हाल ही में उन्होंने संकेत दिया कि जिन शिक्षकों पर भ्रष्टाचार या अनियमित भर्ती के आरोप हैं, उनके खिलाफ कठोर कदम उठाने के बजाय उन्हें कुछ वैकल्पिक भूमिकाओं में समायोजित करने पर विचार किया जा सकता है।
यह कदम, हालांकि प्रशासनिक दृष्टि से व्यावहारिक समझा जा रहा है, लेकिन इसने राज्य में पहले से कार्यरत ईमानदार (‘untainted’) शिक्षकों के बीच गहरी नाराज़गी पैदा कर दी है। उनका कहना है कि ऐसे शिक्षकों को हटाया जाना चाहिए, न कि वैकल्पिक भूमिकाएं देकर सरकारी तंत्र में बनाए रखना चाहिए।
दरअसल, राज्य में लंबे समय से शिक्षक भर्ती घोटाले की गूंज है। कई मामलों में न्यायालयों ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। इस बीच, सरकार ने नए सिरे से शिक्षक भर्ती प्रक्रिया शुरू की है, ताकि योग्य और योग्यताधारी उम्मीदवारों को अवसर मिल सके।
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लेकिन ममता बनर्जी का यह बयान कि "भ्रष्टाचार आरोपित शिक्षकों को पूरी तरह से दरकिनार करने की बजाय उन्हें अन्य विभागों या भूमिकाओं में रखा जा सकता है", ने विवाद को और बढ़ा दिया है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार का ‘भ्रष्टाचार पर नरमी’ का उदाहरण बताया है।
ईमानदार शिक्षकों का कहना है कि इससे शिक्षा तंत्र की साख पर असर पड़ेगा और मेहनत से चयनित उम्मीदवारों का मनोबल टूटेगा। वहीं, सरकार का तर्क है कि शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह बाधित किए बिना समाधान खोजना आवश्यक है।
इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में शिक्षा सुधारों को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है, और देखना होगा कि सरकार इस विरोध और कानूनी चुनौतियों का सामना कैसे करती है।
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