मीर आलम टैंक पर प्रस्तावित नया पुल अब कम पर्यावरणीय प्रभाव वाली कनेक्टिविटी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता दिख रहा है। शुरुआत में इस परियोजना को लेकर यह कयास लगाए जा रहे थे कि यहां आधुनिक और कम प्रभाव वाला केबल-स्टे ब्रिज बनाया जाएगा, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि यह एक पारंपरिक पुल होगा, जिसमें कई पिलर (खंभे) होंगे।
यह प्रस्तावित संपर्क मार्ग शास्त्रीपुरम को बेंगलुरु हाईवे से जोड़ते हुए चिंतलमेट तक जाएगा। परियोजना से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, यह पुल 35 मीटर चौड़ा और लगभग 2.4 किलोमीटर लंबा होगा। निर्माण कार्य के दौरान झील के भीतर कई पिलर खड़े किए जाएंगे। एक अधिकारी ने बताया, “सबसे गहरा हिस्सा लगभग 12 मीटर का है, जबकि अन्य स्थानों पर गहराई करीब नौ मीटर है। झील में पिलर खड़े किए जाएंगे और दोनों सिरों पर गोल चौराहे बनाए जाएंगे, जिससे यातायात सुचारू रूप से चलेगा।”
निर्माण स्थल पर मौजूद एक सुपरवाइजर ने बताया कि यह कोई केबल-स्टे ब्रिज नहीं है, बल्कि एक सामान्य पुल है, ठीक वैसे ही जैसे फ्लाईओवर होते हैं। फिलहाल भारी मशीनें मिट्टी और मलबा डालकर अस्थायी सड़क तैयार कर रही हैं, ताकि निर्माण से जुड़े वाहनों की आवाजाही आसान हो सके।
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हालांकि इस पुल को “आइकॉनिक” कहा जा रहा है, लेकिन इसकी विशेषताओं में बहुत अधिक नवीनता नजर नहीं आती। परियोजना में केवल सजावटी लाइटिंग और 1.5 मीटर चौड़ा फुटपाथ शामिल है, जहां से नेहरू प्राणी उद्यान और मीर महमूद की पहाड़ी का विहंगम दृश्य देखा जा सकेगा।
पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय नागरिकों का मानना है कि झील के भीतर बड़े पैमाने पर पिलर खड़े करने से जलाशय की पारिस्थितिकी पर असर पड़ सकता है। उनका कहना है कि यदि कम पिलर वाला या आधुनिक डिजाइन अपनाया जाता, तो पर्यावरणीय प्रभाव कम किया जा सकता था। अब पारंपरिक पुल के चयन से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन सही तरीके से साधा गया है।
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