मध्य प्रदेश में एक महिला न्यायिक अधिकारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह कदम उन्होंने उस जिला न्यायाधीश की हाईकोर्ट में पदोन्नति के विरोध में उठाया है, जिन पर उन्होंने पूर्व में गंभीर उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।
महिला अधिकारी ने अपने त्यागपत्र में कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा कि उन्हें यह विश्वासघात अपराधियों या गलत लोगों से नहीं, बल्कि उस न्यायिक प्रणाली से मिला है जिसकी रक्षा की शपथ उन्होंने ली थी। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति की पदोन्नति न केवल पीड़ितों के साथ अन्याय है बल्कि यह पूरी न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठाता है।
अपने पत्र में उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने इस मामले में कई बार शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसके बावजूद उसी अधिकारी को हाईकोर्ट में पदोन्नत कर दिया गया, जिससे उन्हें गहरा मानसिक आघात पहुंचा।
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सूत्रों के मुताबिक, महिला अधिकारी ने न्यायपालिका में वर्षों तक ईमानदारी से सेवा दी है और न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए लगातार काम किया है। उनका मानना है कि इस तरह की पदोन्नति पीड़ितों को न्याय से वंचित करती है और न्यायिक तंत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
इस इस्तीफे ने न्यायपालिका के अंदर पदोन्नति प्रक्रिया और उत्पीड़न के मामलों में जवाबदेही को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी है। कई महिला संगठनों और न्यायविदों ने इस घटना को चिंताजनक बताते हुए कहा है कि उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों में पारदर्शिता और नैतिक मानकों का पालन आवश्यक है।
फिलहाल, इस मामले पर हाईकोर्ट और न्यायिक परिषद की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
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