राष्ट्रपति ने बुधवार को न्यायमूर्ति अलोक अराढ़े और न्यायमूर्ति विपुल पंचोली को भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया। यह कदम उच्च न्यायालयों में लंबित कई महत्वपूर्ण मामलों और न्यायिक कार्यों की निगरानी में सुधार लाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम के सदस्य न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना ने न्यायमूर्ति पंचोली की सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति पर आपत्ति जताई थी। न्यायमूर्ति नागरथना का मत था कि न्यायमूर्ति पंचोली को तत्काल उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत करना सही नहीं होगा। उनके इस मतभेद के बावजूद राष्ट्रपति ने अंतिम निर्णय लेते हुए दोनों न्यायाधीशों को पदोन्नत किया।
न्यायमूर्ति अलोक अराढ़े और न्यायमूर्ति विपुल पंचोली ने पहले उच्च न्यायालयों में अपने न्यायिक कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों में न्याय प्रदान किया है। उनके अनुभव और न्यायिक कौशल को सुप्रीम कोर्ट में और प्रभावी ढंग से लागू करने की उम्मीद जताई जा रही है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायमूर्ति पंचोली की पदोन्नति पर मतभेद होने के बावजूद यह कदम सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक ढांचे को और मजबूत करने में मदद करेगा। इससे कोर्ट की कार्यवाही में तेजी आएगी और न्याय वितरण की प्रक्रिया और अधिक प्रभावी होगी।
इस निर्णय के साथ ही न्यायिक परिदृश्य में बदलाव की उम्मीद है, और आने वाले समय में उच्चतम न्यायालय की निर्णय क्षमता और जनहित मामलों में न्याय सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को और सुदृढ़ बनाने की संभावना है।
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