राज्यसभा में शुक्रवार (5 दिसंबर 2025) को बीजेपी सांसद सुजीत कुमार ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि स्कूल की पाठ्यपुस्तकों, एनसीईआरटी प्रकाशनों, सरकारी दस्तावेजों और आधिकारिक वेबसाइटों में ब्रिटिश वायसरायों और गवर्नर जनरल के नामों के पहले लगे ‘लॉर्ड’ उपाधि को हटाया जाए। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी इस तरह की उपाधियां देश में औपनिवेशिक मानसिकता को बढ़ावा देती हैं।
शून्यकाल में मुद्दा उठाते हुए उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी की कक्षा 8 और 12 की इतिहास पुस्तकों में लॉर्ड कर्जन, लॉर्ड माउंटबेटन, लॉर्ड डलहौजी और लॉर्ड लेटन जैसे नामों का बार-बार उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्रालय, प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और बिहार के राजभवन (अब लोक भवन) की वेबसाइटों पर भी इन शीर्षकों का प्रयोग जारी है।
सुजीत कुमार ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान उपनिवेशवादी नीतियों को बढ़ावा देने और नस्लीय श्रेष्ठता के झूठे नैरेटिव को स्थापित करने के लिए ‘लॉर्ड’ जैसे उपाधि दिए जाते थे। उन्होंने कहा कि यह ब्रिटिशों द्वारा ब्रिटिशों के लिए बनाया गया विशेषाधिकार था, जिसे भारत को आज भी अपनाने की आवश्यकता नहीं है।
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उन्होंने सवाल किया कि भारत क्यों उन ब्रिटिश अधिकारियों को ‘अर्ध-देवता’ जैसा दर्जा देता रहे, जिन्होंने भारतीयों के खिलाफ अत्याचार किए, जबकि अपने स्वतंत्रता सेनानियों को ऐसा सम्मान नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि यह प्रथा न केवल औपनिवेशिक मानसिकता को बढ़ावा देती है, बल्कि सामाजिक समानता और संविधान की मूल भावना के भी विपरीत है।
कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने का उदाहरण देते हुए कहा कि यह केवल नाम परिवर्तन नहीं था, बल्कि औपनिवेशिक प्रतीकों से दूर जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने पीएम मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में बताए गए पंच प्रण का उल्लेख करते हुए कहा कि दूसरा प्रण ‘गुलामी की मानसिकता’ से मुक्ति पर जोर देता है, और भारत को इस मानसिकता से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए।
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