सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और मध्यप्रदेश राज्य सरकार को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) के सदस्य-सचिव द्वारा 237 अवैध पर्यावरण मंजूरियां देने का आरोप लगाया गया है।
यह याचिका पर्यावरण कार्यकर्ताओं और वकीलों के एक समूह द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ये मंजूरियां जानबूझकर सामूहिक निर्णय प्रक्रिया को दरकिनार करके दी गईं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन मामलों में कानून द्वारा निर्धारित सामूहिक निर्णय की प्रक्रिया को नजरअंदाज किया गया और इसके बजाय ‘स्वीकृति मानी जाएगी’ (Deemed Approval) प्रावधान का दुरुपयोग करते हुए अनुमतियाँ दे दी गईं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि परियोजनाओं की मंजूरी के लिए निर्धारित वैधानिक समयसीमा को जानबूझकर पार किया गया, जिससे सदस्य-सचिव को व्यक्तिगत रूप से निर्णय लेने का मौका मिल सके। इससे पारदर्शिता और उत्तरदायित्व पर गहरा प्रश्नचिन्ह लग गया है।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने याचिका को गंभीरता से लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि आरोप सही पाए गए, तो यह पर्यावरणीय कानूनों और शासन की प्रक्रिया की एक गंभीर अवहेलना मानी जाएगी।
इस प्रकरण ने पर्यावरण मंजूरियों की प्रक्रिया में सुधार और पारदर्शिता की आवश्यकता को एक बार फिर उजागर कर दिया है।