सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 दिसंबर 2025) को भारत के चुनाव आयोग (EC) को तीखी फटकार लगाते हुए कहा कि वह विशेष मतदाता सूची संशोधन (Special Intensive Revision — SIR) प्रक्रिया से जुड़ी मतदाताओं की वास्तविक मानवीय समस्याओं के समाधान में रूचि नहीं दिखा रहा है और हर बार “यांत्रिक और एक जैसे” जवाब देकर मुद्दों को टाल देता है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्य कांत ने कहा कि अदालत बार-बार देख रही है कि जब भी तमिलनाडु के प्रवासी मजदूरों या केरल के छात्रों जैसे लोगों द्वारा वास्तविक कठिनाइयाँ अदालत में रखी जाती हैं, आयोग आंकड़ों और फॉर्म-सबमिशन की संख्या बताकर समस्या को दबाने की कोशिश करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह रवैया अस्वीकार्य है क्योंकि मतदाता सूची सुधार का उद्देश्य अधिकतम सही और निष्पक्ष मतदाता पंजीकरण सुनिश्चित करना है, न कि केवल आँकड़ों का हवाला देना।
अदालत ने यह भी कहा कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) की सुरक्षा और सुविधा केवल राज्य सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है। चुनाव आयोग को भी अपने फील्ड अधिकारियों को सुरक्षित और तनावमुक्त वातावरण देने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। अदालत ने टिप्पणी की कि BLOs पर बढ़ते तनाव का कारण राजनीतिक दलों का शत्रुतापूर्ण व्यवहार भी है, जिसे आयोग ने स्वीकार किया।
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याचिकाओं में प्रवासी मजदूरों और छात्रों ने समयसीमा बढ़ाने और दस्तावेज़ों की सत्यापन प्रक्रिया को सरल करने की मांग रखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा कि वह मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता दे और मतदाताओं की वास्तविक समस्याओं को समझते हुए समाधान पेश करे, केवल सांख्यिकीय आँकड़े नहीं।
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