पश्चिम बंगाल में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (SIR) अभियान के दौरान कोलकाता के सोनागाछी क्षेत्र की सेक्स वर्कर आशंकित हैं कि कहीं वे मतदाता सूची से बाहर न हो जाएं। मंगलवार को तीन विशेष कैंप लगाए गए, जिन्हें फूलों से सजाया गया था। यहां कतार में खड़ी महिलाएँ अपने फॉर्म्स को कसकर पकड़े हुए थीं और कई अपने चेहरे को दुपट्टे या शॉल से ढककर अपनी पहचान छुपाने की कोशिश कर रही थीं।
यह महिलाएं कहती हैं कि वे “नोवेयर पीपल” हैं—जिनका अस्तित्व समाज की नज़र में कहीं दर्ज नहीं—परंतु वोटर कार्ड उन्हें “समवेयर वोटर” यानी राजनीतिक रूप से मौजूद नागरिक बनाता है। यही कारण है कि मतदाता सूची में बने रहना उनके लिए बेहद जरूरी है।
सोनागाछी, जो भारत के सबसे बड़े रेड-लाइट इलाकों में से एक है, वहां रहने वाली महिलाओं के लिए पहचान साबित करना हमेशा कठिन रहा है। उनका पता, जो आधिकारिक दस्तावेजों में कम ही स्वीकार किया जाता है, अक्सर उन्हें सरकारी सेवाओं से दूर रखता है।
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इन महिलाओं का पहली बार 2007 में मतदाता सूची में पंजीकरण हुआ था — वह भी तब, जब उन्होंने विरोध प्रदर्शन कर मतदाता पहचान पत्र की मांग उठाई थी। उस समय सहकारी बैंक में उनके पासबुक को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया था। लेकिन अब वे आशंकित हैं कि वही दस्तावेज़ SIR अभियान के दौरान पर्याप्त नहीं माने जाएंगे।
दस्तावेज़ों की कमी, पारिवारिक पहचान का अभाव और स्थायी पते की समस्या के कारण कई सेक्स वर्कर डर रही हैं कि कहीं वे दोबारा “कागज़ पर अदृश्य” न हो जाएं।
अधिकारियों ने हालांकि आश्वासन दिया है कि किसी को भी अनुचित रूप से सूची से हटाया नहीं जाएगा। फिर भी महिलाओं में अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि पहचान और अस्तित्व की लड़ाई उनके लिए हमेशा लंबी और कठिन रही है।
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