सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (1 दिसंबर 2025) को एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए देशभर में बढ़ते ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी रैकेट पर कड़ा प्रहार किया। अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को ऐसे साइबर अपराधियों और उनके नेटवर्क पर कार्रवाई करने के लिए पूरी स्वतंत्रता प्रदान की है। इसके साथ ही CBI को उन बैंकों की भूमिका की भी जांच करने का अधिकार दिया गया है, जिनमें साइबर अपराध से जुड़े ‘म्यूल अकाउंट्स’ पाए जाते हैं।
मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने कहा कि अब “काफी हो चुका है” और इस प्रकार की ठगियां राष्ट्रव्यापी खतरा बन चुकी हैं। अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत नोट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया कि अब तक 3,000 करोड़ रुपये की ठगी ‘डिजिटल अरेस्ट’ के माध्यम से की जा चुकी है। इनमें सबसे अधिक शिकार वरिष्ठ नागरिक और संवेदनशील वर्ग बने हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने CBI को इंटरपोल के साथ समन्वय स्थापित करने का निर्देश भी दिया है ताकि विदेशों में स्थित साइबर अपराधियों के ठिकानों की पहचान की जा सके। उद्देश्य यह है कि भारत को निशाना बनाने वाले इन अंतरराष्ट्रीय ठग गिरोहों के नेटवर्क को जड़ से खत्म किया जाए।
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‘डिजिटल अरेस्ट’ रैकेट में ठग खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी बताकर पीड़ितों को धमकाते हैं, उन्हें अपराध में फंसाने की झूठी जानकारी देते हैं और वीडियो कॉल के माध्यम से उन्हें “बंदी” बनाकर भारी-भरकम रकम वसूलते हैं।
शीर्ष अदालत ने इस घोटाले की व्यापकता और इसके समाज पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को देखते हुए इसे तत्काल राष्ट्र-स्तरीय हस्तक्षेप योग्य मुद्दा माना। कोर्ट ने कहा कि CBI को बिना किसी सीमा के इस पूरे नेटवर्क का सफाया करना चाहिए।
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