अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/AI) से जुड़े राज्य-स्तरीय नियमों को सीमित करने के उद्देश्य से एक व्यापक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं। इस कदम के बाद देशभर में राजनीतिक और कानूनी बहस तेज हो गई है, क्योंकि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन—दोनों दलों के शासित राज्यों ने इसे संघीय सत्ता का अतिक्रमण बताया है और मुकदमे की चेतावनी दी है।
शुक्रवार को हस्ताक्षरित इस कार्यकारी आदेश के तहत राज्यों पर दबाव डाला गया है कि वे एआई तकनीक को लेकर अपने स्तर पर सख्त नियम न बनाएं। ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि अलग-अलग राज्यों में भिन्न नियम होने से तकनीकी कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और इससे नवाचार, निवेश और आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है।
राष्ट्रपति ट्रंप और कई रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि एआई अभी विकास के शुरुआती चरण में है और इस पर अत्यधिक या बिखरे हुए नियम तकनीक की संभावनाओं को सीमित कर सकते हैं। उनका मानना है कि यदि अमेरिका वैश्विक स्तर पर एआई की दौड़ में आगे रहना चाहता है, तो उसे उदार और एकरूप नीतियों की जरूरत है।
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हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह कार्यकारी आदेश राज्यों के अधिकारों को कमजोर करता है। कई राज्य सरकारें पहले ही एआई के इस्तेमाल से जुड़े गोपनीयता, भेदभाव, डेटा सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण जैसे मुद्दों पर कानून बना चुकी हैं। उनका तर्क है कि स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए ये नियम आम लोगों को संभावित जोखिमों से बचाने के लिए जरूरी हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस आदेश से एआई को लेकर नियमन बनाम नवाचार की बहस और तेज होगी। जहां एक ओर केंद्र सरकार तकनीकी कंपनियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारें नागरिक अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता देने पर जोर दे रही हैं। आने वाले समय में इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई और राजनीतिक टकराव बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।
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