साल 2020 के दिल्ली दंगों की साज़िश से जुड़े मामले में आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि केवल “कड़वे या अप्रिय” भाषण देने से किसी पर UAPA के कठोर प्रावधान नहीं लगाए जा सकते। मंगलवार (9 दिसंबर 2025) को आरोपियों ने अपनी ज़मानत याचिकाओं पर अंतिम दलीलें प्रस्तुत कीं।
शरजील इमाम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ को बताया कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला मुख्य रूप से उन भाषणों पर आधारित है जो इमाम ने दिए थे। उन्होंने कहा कि केवल भाषण देने को स्वतः “आतंकी कृत्य” नहीं माना जा सकता, जैसा कि UAPA की धारा 15 में परिभाषित किया गया है।
दवे ने तर्क दिया कि भाषण, चाहे वे कितने भी अप्रिय क्यों न हों, तब तक अपराध नहीं बन सकते जब तक उनके परिणामस्वरूप हिंसा, आतंक गतिविधि या संगठित साज़िश जैसा ठोस प्रमाण न मिले। उन्होंने कहा कि UAPA का उपयोग केवल उन मामलों में होना चाहिए जहां वास्तविक आतंकवादी गतिविधि या उससे जुड़ी साज़िश पाई जाए, न कि मतभेद या असहमति व्यक्त करने पर।
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बचाव पक्ष ने कहा कि आरोपियों को लगभग पूरी तरह भाषणों के आधार पर कठोर आतंकवाद-रोधी कानून के तहत घसीटना कानून के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की नींव है और उसे आतंकवाद से जोड़ना अनुचित और खतरनाक मिसाल पैदा कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जल्द ही मामले में सभी पक्षों की अंतिम दलीलें सुनेगा। अदालत यह भी देखेगी कि क्या UAPA की कठोर धाराएं केवल भाषणों के आधार पर लागू की जा सकती हैं या नहीं।
यह मामला नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई घटनाओं से संबंधित है, जिसमें आरोपियों पर हिंसा भड़काने की साज़िश रचने का आरोप है।
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