वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने गुरुवार (25 दिसंबर 2025) को केरल कैबिनेट के स्थायी, फोटोयुक्त नैटिविटी कार्ड शुरू करने के फैसले की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम न केवल अनावश्यक है, बल्कि पूरी तरह “राजनीतिक रूप से प्रेरित” है।
बुधवार (24 दिसंबर) को कैबिनेट द्वारा सिद्धांत रूप में दी गई मंजूरी पर प्रतिक्रिया देते हुए मुरलीधरन ने कहा कि नागरिकता और उससे जुड़े मामलों को तय करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है। उन्होंने सवाल किया कि जब आधार कार्ड में पहले से ही व्यक्ति से जुड़ी विस्तृत जानकारी उपलब्ध है, तो राज्य सरकार को एक और पहचान पत्र लाने की क्या आवश्यकता है।
भाजपा नेता ने कहा, “इस नैटिविटी कार्ड के पीछे एक रहस्य है,” और जोड़ा कि यह फैसला गंभीर कानूनी और संवैधानिक प्रश्न खड़े करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह निर्णय सार्वजनिक धन की बर्बादी के लिए लिया गया है और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन तथा उनके सहयोगी इस परियोजना के जरिए चुनावी फंडिंग पर नजर रखे हुए हैं।
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मुरलीधरन ने कहा कि वामपंथी सरकार का इतिहास रहा है कि वह ऐसे फैसलों की घोषणा करती है, जिनसे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है, लेकिन आम लोगों को कोई वास्तविक लाभ नहीं मिलता। उन्होंने सरकार से करदाताओं के पैसे के दुरुपयोग वाले फैसलों को वापस लेने की अपील की।
उन्होंने रुकी हुई सिल्वरलाइन रेल परियोजना का हवाला देते हुए कहा कि सरकार अब उन पीले सीमा-चिह्नों को हटाने में लगी है, जो पहले सार्वजनिक खर्च पर लगाए गए थे। इससे साफ होता है कि फैसले कितनी खराब योजना के साथ लिए जा रहे हैं।
यह आलोचना मुख्यमंत्री पिनराई विजयन द्वारा कैबिनेट की मंजूरी की घोषणा के एक दिन बाद आई। मुख्यमंत्री ने कहा था कि मौजूदा व्यवस्था में लोगों को बार-बार नैटिविटी प्रमाणपत्र लेना पड़ता है और इसके पास वैधानिक आधार नहीं है। उन्होंने बताया कि नया कार्ड जन्म, निवास या स्थायी स्थिति साबित करने में मदद करेगा और किसी को वंचित होने से रोकेगा।
हालांकि, भाजपा ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि इस फैसले को कानूनी चुनौती दी जाएगी और इसे “खतरनाक अलगाववादी राजनीति” करार दिया है।
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