तेजी से बदलते भारत के राजनीतिक परिदृश्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने सबसे युवा नेताओं में से एक नितिन नवीन को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। महज 45 वर्ष की उम्र में कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए नितिन नवीन न केवल इस पद पर पहुंचने वाले सबसे युवा नेता हैं, बल्कि बिहार से आने वाले पहले ऐसे नेता भी हैं, जिन्हें पार्टी की शीर्ष जिम्मेदारी मिली है। इससे पहले यह रिकॉर्ड नितिन गडकरी के नाम था, जो 52 वर्ष की उम्र में इस पद पर पहुंचे थे।
नितिन नवीन को वरिष्ठ और स्थापित नेताओं पर तरजीह देना बीजेपी संसदीय बोर्ड की दूरदर्शिता को दर्शाता है। युवा नेतृत्व के रूप में नितिन नवीन पार्टी को उस वर्ग से जोड़ सकते हैं, जो भविष्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाला है। वह वरिष्ठ बीजेपी नेता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के पुत्र हैं, जिससे उन्हें राजनीतिक विरासत के साथ-साथ नई सोच भी मिली है। बिहार के कायस्थ समुदाय से आने वाले नितिन नवीन प्रशासन, शिक्षा, मीडिया और पेशेवर वर्गों में प्रभाव रखने वाले सामाजिक समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उनका राजनीतिक सफर अचानक शुरू हुआ, जब पिता के निधन के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर राजनीति में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने बैंकिपुर विधानसभा सीट से लगातार चार चुनाव जीते और 2006 में पटना पश्चिम से उपचुनाव भी जीता। सड़क निर्माण, शहरी विकास और विधि मंत्री जैसे अहम विभागों में काम कर उन्होंने प्रशासनिक अनुभव हासिल किया।
और पढ़ें: केरल के स्थानीय निकायों में बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस से कोई गठजोड़ नहीं: माकपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मेहनती कार्यकर्ता बताते हुए बधाई दी और उनके संगठनात्मक अनुभव की सराहना की। हालांकि, नितिन नवीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती पूर्वी और दक्षिणी भारत में पार्टी को मजबूत करना है, जहां बीजेपी को अब तक सीमित सफलता मिली है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में क्षेत्रीय राजनीति और स्थानीय मुद्दे बड़ी बाधा हैं।
आगामी वर्षों में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2029 का लोकसभा चुनाव नितिन नवीन के नेतृत्व की असली परीक्षा होंगे। उन्हें पार्टी के पारंपरिक समर्थन आधार को बनाए रखते हुए युवा मतदाताओं से भी जुड़ना होगा। शांत स्वभाव, मेहनत और संगठनात्मक क्षमता के साथ नितिन नवीन के सामने अवसर भी बड़े हैं और चुनौतियां भी।
और पढ़ें: महाराष्ट्र की नगर निगम चुनावी लड़ाई: क्या भाजपा अपनी पकड़ बनाए रख पाएगी?