केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इन्कम्बेंसी) ने सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया है। राज्य विधानसभा में लगातार दूसरी बार सत्ता में रही एलडीएफ सरकार, जिसने 2015 और 2020 के स्थानीय निकाय चुनावों में लगातार जीत दर्ज की थी, अब आगामी विधानसभा चुनावों से पहले गंभीर राजनीतिक चुनौतियों का सामना करती दिख रही है।
राज्य में चल रही सत्ता विरोधी भावना अब सतह पर साफ नजर आने लगी है। स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों से संकेत मिलता है कि शहरी मतदाताओं ने इस बार लेफ्ट से दूरी बना ली है। कई शहरों और कस्बों में मतदाताओं का रुझान कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की ओर स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। यह बदलाव आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एलडीएफ के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है।
हालांकि यूडीएफ की जीत केवल सामान्य सत्ता विरोधी लहर का परिणाम नहीं मानी जा रही है। चुनावी नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि केरल के कोट्टायम, इडुक्की, एर्नाकुलम और मलप्पुरम जैसे जिलों में लेफ्ट की हार कहीं अधिक गहरी और निर्णायक रही है। ये जिले लंबे समय से यूडीएफ के मजबूत गढ़ माने जाते रहे हैं। यहां लेफ्ट के खिलाफ मतों का स्पष्ट एकीकरण देखने को मिला, जिससे यूडीएफ को सीधा फायदा हुआ।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इन जिलों में विकास, शहरी बुनियादी ढांचे, रोजगार और स्थानीय प्रशासन से जुड़े मुद्दों पर मतदाताओं की नाराजगी ने एलडीएफ को नुकसान पहुंचाया है। वहीं यूडीएफ ने स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर और संगठनात्मक मजबूती के जरिए मतदाताओं का भरोसा फिर से हासिल करने में सफलता पाई।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यदि एलडीएफ समय रहते जनभावनाओं को समझने और नीतिगत सुधार करने में विफल रहता है, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में उसे और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि केरल की राजनीति में बदलाव की हवा चल पड़ी है।
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