बिहार विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में बढ़ती हत्याओं और हिंसक अपराधों ने कानून-व्यवस्था को लेकर सियासी घमासान छेड़ दिया है। विपक्षी ‘महागठबंधन’ लगातार नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर हमलावर है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि “बेहोश मुख्यमंत्री” के नेतृत्व में बिहार “अराजकता” में डूब गया है। वहीं एनडीए के ही घटक दल लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने भी कहा कि हाल की घटनाएं राज्य में कानून-व्यवस्था की “पूरी तरह से विफलता” को दर्शाती हैं।
हालांकि नीतीश कुमार को कभी बिहार में “जंगलराज” खत्म करने का श्रेय दिया गया था, लेकिन पिछले एक दशक के आंकड़े उनकी छवि पर सवाल उठाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) और राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (SCRB) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 से 2024 के बीच बिहार में कुल अपराधों की संख्या में 80.2% की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर यह वृद्धि केवल 32.5% रही।
2015 के बाद से बिहार में अपराध हर साल बढ़े हैं, केवल 2016, 2020 (कोविड महामारी के कारण) और 2024 को छोड़कर। वर्ष 2017 में अपराधों में सबसे अधिक 24.4% की वार्षिक वृद्धि दर्ज हुई थी। 2022 में राज्य में 3.48 लाख अपराध दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष से 23.3% अधिक थे। 2023 में यह संख्या बढ़कर 3.54 लाख हो गई, जबकि 2024 में मामूली गिरावट के साथ यह आंकड़ा 3.52 लाख रहा।
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आंकड़े बताते हैं कि 2015 से बिहार लगातार उन शीर्ष 10 राज्यों में शामिल रहा है, जहां सबसे अधिक अपराध दर्ज किए गए।
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