भारतीय राजनीति में जब कोई अनुभवी रणनीतिकार सीधे चुनावी मैदान में उतरता है, तो यह हमेशा दिलचस्प होता है। प्रशांत किशोर, जिन्होंने कई पार्टियों की जीत में अहम भूमिका निभाई, अब खुद बिहार में अपनी ‘जन सुराज पार्टी (JSP)’ का नेतृत्व कर रहे हैं। बिना किसी औपचारिक जनमत सर्वेक्षण के, किशोर का यह राजनीतिक दांव पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। उनके अपने शब्दों में — “अर्श पर या फर्श पर” — यह उनकी अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा है।
इतिहास बताता है कि भारत में नई पार्टियां आमतौर पर तीन तरह से जन्म लेती हैं —
- जनआंदोलनों या करिश्माई नेताओं से, जैसे एनटी रामाराव की तेलुगु देशम पार्टी (1983) या असम गण परिषद (1985)।
- किसी मिशन या जनहित अभियान से, जैसे आम आदमी पार्टी (AAP) या अब जन सुराज।
- गठबंधन आधारित छोटी क्षेत्रीय पार्टियां, जो अक्सर सीमित प्रभाव छोड़ती हैं।
पहले दो वर्गों की पार्टियों ने कई बार बड़ी सफलता हासिल की, जबकि तीसरी श्रेणी की पार्टियां अक्सर “स्पॉइलर” की भूमिका निभाती हैं — यानी दूसरों के वोट काटकर परिणाम बदल देती हैं।
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2024 के बिहार उपचुनावों में JSP ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा। इमामगंज में उसके प्रत्याशी जीतेंद्र पासवान ने 37,000 से अधिक वोट पाकर एनडीए की जीत का अंतर घटा दिया। बेलागंज में JSP के उम्मीदवार ने राजद की पारंपरिक सीट पर बड़ा असर डाला।
हालांकि JSP को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन इसके प्रदर्शन ने यह साफ कर दिया कि पार्टी का अस्तित्व बिहार की राजनीतिक गणित को बदल सकता है — चाहे यह खुद सत्ता में न आए, मगर दूसरों के समीकरणों को अवश्य चुनौती देगा।
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