सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष को आदेश दिया कि वे 10 विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर निर्णय लें। अदालत ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता प्रक्रिया में अक्सर राजनीतिक कारणों से देरी की जाती है, जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित होती है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि विधानसभा अध्यक्षों का अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में निष्पक्ष और समयबद्ध होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह देरी न केवल विधायिका की गरिमा को प्रभावित करती है बल्कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को भी कमजोर करती है।
अदालत ने संसद से अपील की कि वह दसवीं अनुसूची के प्रावधानों की समीक्षा करे ताकि ऐसी याचिकाओं के निपटारे में पारदर्शिता और तेजी सुनिश्चित की जा सके। पीठ ने कहा, “अयोग्यता प्रक्रिया का उपयोग राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं होना चाहिए। वक्त रहते निर्णय लेना लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है।”
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इस मामले में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि 10 विधायक दल-बदल कर गए हैं और उन्हें संविधान के प्रावधानों के तहत अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विधानसभा अध्यक्ष जानबूझकर इस पर फैसला नहीं ले रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद अब तेलंगाना विधानसभा में राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अयोग्यता याचिकाओं पर जल्द निर्णय होता है तो राज्य की सत्ता संतुलन में बड़ा बदलाव आ सकता है।
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