कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति की आलोचना करते हुए कहा कि उनके सामाजिक-शैक्षिक सर्वेक्षण का उद्देश्य केवल पिछड़ी जातियों तक सीमित नहीं है।
सिद्धारमैया ने कहा कि दंपति का यह रुख शायद सर्वेक्षण के उद्देश्य को लेकर किसी गलतफहमी पर आधारित है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह सर्वेक्षण पूरे समाज के शैक्षिक और सामाजिक पहलुओं को समझने के लिए किया जा रहा है, न कि केवल किसी विशेष वर्ग या जाति तक सीमित।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सर्वेक्षण का मकसद शैक्षिक असमानताओं और सामाजिक विषमताओं को पहचानना और सुधार के लिए नीति बनाने में मदद करना है। उन्होंने संकेत दिया कि सर्वेक्षण में सहयोग न करने से व्यापक नीति निर्माण और समाज के विभिन्न वर्गों के विकास पर प्रभाव पड़ सकता है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इस बयान के बाद मूर्ति दंपति और राज्य सरकार के बीच संवाद की आवश्यकता और बढ़ गई है। उनका रुख यह दर्शाता है कि शिक्षा और सामाजिक सुधार के मुद्दे केवल किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि सभी वर्गों और समुदायों के लिए लाभकारी होना चाहिए।
इस विवाद ने कर्नाटक में शैक्षिक और सामाजिक नीति को लेकर सार्वजनिक चर्चा को भी बढ़ा दिया है। आगामी दिनों में यह देखा जाएगा कि दंपति और सरकार के बीच किस प्रकार का संवाद स्थापित होता है और सर्वेक्षण में सहयोग के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।
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