राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को कहा कि कर संग्रह की प्रक्रिया करदाताओं के लिए अत्यधिक सहज और न्यूनतम असुविधा वाली होनी चाहिए। भारतीय राजस्व सेवा (कस्टम्स व अप्रत्यक्ष कर) के अधिकारी प्रशिक्षुओं को राष्ट्रपति भवन में संबोधित करते हुए उन्होंने पारदर्शी, जवाबदेह और तकनीक-आधारित कर प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि राजस्व संग्रह राष्ट्र निर्माण की नींव है क्योंकि यही धन शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे जैसी आवश्यक सेवाओं के लिए इस्तेमाल होता है। इसलिए अधिकारी राष्ट्र निर्माण के सक्रिय सहभागी हैं।
राष्ट्रपति ने चाणक्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा, “सरकार को कर ऐसे एकत्र करने चाहिए जैसे मधुमक्खी फूल से उतना ही मधु लेती है जिससे दोनों जीवित रह सकें।”
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मुर्मू ने कहा कि सितंबर में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (GST) सुधार भारत की कर व्यवस्था को नया स्वरूप देने वाला ऐतिहासिक कदम है। इन सुधारों का उद्देश्य उद्यमिता को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन करना और लोगों के लिए जीवन को अधिक किफायती बनाना है। ये सुधार समावेशी विकास, स्थिरता और नई पीढ़ी के सशक्तिकरण के लक्ष्य को मजबूत करते हैं।
उन्होंने अधिकारियों से कहा कि कर प्रणाली विश्वास और निष्पक्षता का सेतु बने, बाधा नहीं। राजस्व सेवा अधिकारी के रूप में वे कई भूमिकाएँ निभाएंगे—प्रशासक, अन्वेषक, व्यापार सुविधा प्रदान करने वाले और कानून लागू करने वाले। वे देश को तस्करी, वित्तीय धोखाधड़ी और अवैध व्यापार से बचाने के साथ-साथ वैध व्यापार और वैश्विक साझेदारी को सुगम बनाते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकारियों को प्रवर्तन और सुविधा, दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा। उन्होंने ईमानदारी, पारदर्शिता, डिजिटल गवर्नेंस, डेटा-आधारित फैसले और स्वचालन अपनाकर कर प्रशासन को अधिक प्रभावी और नागरिक-अनुकूल बनाने पर जोर दिया।
उन्होंने सलाह दी कि अधिकारी वैश्विक व्यापार, तकनीक और अर्थव्यवस्था में तेजी से हो रहे बदलावों के अनुसार स्वयं को लगातार अपडेट रखें।
मुर्मू ने कहा कि युवा अधिकारी 2047 तक विकसित भारत और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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