वैज्ञानिक ग्रहों और तारों का तापमान सीधे थर्मामीटर से नहीं माप सकते, क्योंकि ये पिंड धरती से बहुत दूर स्थित होते हैं। इसके बजाय, वे उन्नत खगोलीय तकनीकों और गणनाओं का उपयोग करते हैं।
तापमान निर्धारण के लिए सबसे प्रमुख तरीका है स्पेक्ट्रोस्कोपी। जब कोई ग्रह या तारा प्रकाश उत्सर्जित या परावर्तित करता है, तो उस प्रकाश का विश्लेषण विशेष यंत्रों से किया जाता है। इस प्रकाश में विभिन्न तरंगदैर्घ्य (wavelengths) के आधार पर यह पता चलता है कि वहां कौन से तत्व मौजूद हैं और सतह या वातावरण का तापमान कितना है।
तारों के मामले में, वैज्ञानिक ब्लैकबॉडी रेडिएशन थ्योरी का उपयोग करते हैं। यह सिद्धांत बताता है कि कोई भी गर्म पिंड अपने तापमान के अनुसार विशेष रंग या विकिरण (radiation) उत्सर्जित करता है। उदाहरण के लिए, नीले रंग के तारे ज्यादा गर्म होते हैं जबकि लाल रंग के तारे अपेक्षाकृत ठंडे होते हैं। इस प्रकाश की तीव्रता और रंग का विश्लेषण करके सतह का अनुमानित तापमान निकाला जाता है।
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ग्रहों के लिए, वैज्ञानिक इन्फ्रारेड टेलीस्कोप का सहारा लेते हैं, क्योंकि ग्रह अपने तापमान के कारण अवरक्त (infrared) विकिरण उत्सर्जित करते हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रह पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश और उसके परावर्तन (albedo) का अध्ययन भी किया जाता है। यदि ग्रह के पास वातावरण है, तो तापमान का अनुमान वातावरण की संरचना और बादलों के आधार पर भी लगाया जाता है।
इन तरीकों से वैज्ञानिक न केवल ग्रहों और तारों के सतही तापमान का पता लगाते हैं, बल्कि उनके आंतरिक ढांचे और जलवायु की भी जानकारी प्राप्त करते हैं।
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