बॉलीवुड फिल्मों में राज्यों और संस्कृतियों की प्रस्तुति को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है। हाल ही में यह मुद्दा फिर चर्चा में है, जब फिल्म के एक गीत ‘पारम सुंदरि’ और अभिनेत्री जाह्नवी कपूर के किरदार ने केरल की छवि को लेकर नई बहस छेड़ दी।
फिल्म में केरल के प्रतिनिधित्व और विशेषकर मलयालम भाषा के उच्चारण पर सवाल उठाए जा रहे हैं। दर्शकों और समीक्षकों का मानना है कि फिल्मों में अक्सर केरल को या तो विदेशी सैलानियों के आकर्षण स्थल के रूप में या फिर रूढ़िवादी पृष्ठभूमि में दिखाया जाता है। यही वजह है कि जब भी केरल पर आधारित किरदार या कहानी आती है, तो वहां की असली सांस्कृतिक गहराई पर्दे पर नजर नहीं आती।
जाह्नवी कपूर के किरदार को लेकर भी आलोचना की जा रही है। कहा जा रहा है कि उनके संवादों और उच्चारण में स्थानीय रंग नहीं दिखा, जिससे प्रामाणिकता पर सवाल उठ खड़े हुए। इसी के साथ, ‘पारम सुंदरि’ गीत को भी ऐसे प्रस्तुत किया गया, जैसे यह केवल मनोरंजन का साधन हो, जबकि गीत और किरदार का स्थानीय संदर्भ कहीं पीछे छूट गया।
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विशेषज्ञों का मानना है कि बॉलीवुड में केरल और मलयालम संस्कृति की प्रस्तुति प्रायः सतही रही है। यह प्रवृत्ति केवल मनोरंजन पर जोर देती है और वहां की वास्तविक जीवन शैली, परंपराओं और सांस्कृतिक विविधताओं को सही तरह से सामने नहीं लाती।
इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या बॉलीवुड को स्थानीय संस्कृतियों और भाषाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए? साथ ही, क्या कलाकारों को भूमिकाओं की गहराई में जाकर क्षेत्रीय प्रामाणिकता को जीवंत करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए?
यह बहस अब धीरे-धीरे हिंदी सिनेमा के दर्शकों और समीक्षकों के बीच गंभीर विमर्श का विषय बनती जा रही है।