भारत में संसद और राज्य विधानसभाओं में लगभग 30 प्रतिशत सांसद और विधायक गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। यह तथ्य देश की राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की बढ़ती हिस्सेदारी को उजागर करता है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, लोकसभा में गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 2009 के बाद से दोगुनी हो गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति भारतीय लोकतंत्र और कानून के प्रति जनता के विश्वास को प्रभावित कर सकती है। गंभीर आपराधिक मामलों में हत्या, बलात्कार, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराध शामिल हो सकते हैं। चुनाव आयोग और अन्य निगरानी संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद, इन नेताओं की राजनीति में हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।
राजनीतिक दलों की ओर से उम्मीदवार चयन में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को प्राथमिकता देने के कारण यह स्थिति बनी हुई है। कई बार, इन नेताओं के पास बड़े पैमाने पर संसाधन और जनसमर्थन होता है, जो चुनाव में उन्हें जीत दिलाने में मदद करता है।
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विश्लेषकों का कहना है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में सुधार और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि चुनावी उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि का गंभीर मूल्यांकन किया जाए। इसके अलावा, जनता में जागरूकता बढ़ाना और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को सत्ता में आने से रोकना भी महत्वपूर्ण है।
इस मुद्दे पर गंभीर ध्यान न देने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और राजनीतिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अपराध की हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
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