इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुआवज़े के भुगतान को लेकर सरकारी विभागों की लापरवाही पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए कहा है कि किसी आवेदक को एक विभाग से दूसरे विभाग में “शटल कॉक” की तरह नहीं घुमाया जा सकता। अदालत ने सिंचाई और शहरी विकास विभाग के शीर्ष अधिकारियों द्वारा न्यायालय के आदेशों की अवहेलना को गंभीरता से लिया है।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, सिंचाई और शहरी विकास विभाग के प्रमुखों तथा प्रयागराज के जिलाधिकारी (डीएम) को एक माह के भीतर शपथपत्र दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया है कि वर्ष 2016 में पारित हाईकोर्ट के आदेश का पूर्ण अनुपालन किया गया है। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो संबंधित सभी अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होकर अवमानना की कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति की पीठ द्वारा एक अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। यह याचिका विनय कुमार सिंह द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि प्रयागराज के हंडिया क्षेत्र के भैरोंपुर गांव में स्थित उनकी तीन जमीनों का अधिग्रहण सरकार द्वारा किया गया था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें आज तक मुआवज़ा नहीं दिया गया।
और पढ़ें: नवी मुंबई में बेटे की चाहत में मां ने छह साल की बेटी की गला घोंटकर हत्या की: पुलिस
याचिका के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 27 जुलाई 2016 को संबंधित विभाग को स्पष्ट आदेश दिया था कि अधिग्रहित भूमि का मुआवज़ा याचिकाकर्ता को दिया जाए। इसके बावजूद कई वर्षों तक आदेश का पालन नहीं हुआ और अलग-अलग विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे।
कोर्ट ने कहा कि सरकारी तंत्र की इस तरह की कार्यशैली न केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना है, बल्कि आम नागरिकों को अनावश्यक रूप से परेशान करने का भी उदाहरण है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि आदेशों का समयबद्ध पालन नहीं हुआ, तो अवमानना की कार्यवाही से कोई भी अधिकारी नहीं बच सकेगा।
और पढ़ें: मुंबई में 60 सीटों पर चुनाव की तैयारी में अजित पवार की एनसीपी, अकेले लड़ने के संकेत