असम सरकार ने फैसला किया है कि असम आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए नागरिक समाज संगठनों की पहल पर गठित गैर-सरकारी आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश की जाएगी। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि यह पहली बार होगा जब किसी गैर-सरकारी संस्था द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाएगी। पाँच दिवसीय सत्र 25 नवंबर से शुरू होगा।
पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने बताया कि ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) टी.यू. मेहता आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है, ताकि आंदोलन से जुड़े सभी पहलुओं को लोग समझ सकें। सरकार ने इसे सदन में रखने की मंजूरी दे दी है।
सरमा ने कहा कि इसके साथ ही 1983 में हुई हिंसा की जांच के लिए गठित तिवारी आयोग की रिपोर्ट की प्रतियां भी सभी विधायकों को उपलब्ध कराई जाएंगी। तिवारी आयोग की रिपोर्ट 1987 में विधानसभा में पेश की गई थी, लेकिन इसकी सिर्फ एक प्रति ही स्पीकर को भेजी गई थी।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि असम आंदोलन पर आधारित ये रिपोर्टें ऐतिहासिक दस्तावेज हैं और इन्हें सार्वजनिक करना बेहद जरूरी है। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह रिपोर्टों को सार्वजनिक करने का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से कर रही है।
सरमा ने कहा कि रिपोर्ट में AASU के बारे में कुछ नकारात्मक बातें हो सकती हैं, लेकिन AASU खुद इसके सार्वजनिक होने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि इतिहास छुपाना मानवता के खिलाफ अपराध है।
इसके अलावा, मंत्रिमंडल ने 27 विधेयकों को भी मंजूरी दी है, जिनमें चाय बागान मजदूरों को भूमि आवंटन, अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा संचालित निजी विद्यालयों की फीस विनियमन और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा एक विश्वविद्यालय की स्थापना शामिल है।
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