बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के लिए मुकाबला बेहद अहम हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली इस पार्टी के सामने इस बार मान्यता प्राप्त दल का दर्जा बचाने की चुनौती है।
चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि यदि HAM इस बार पर्याप्त सीटें जीतने में विफल रहती है, तो पार्टी अपना “मान्यता प्राप्त” दल का दर्जा खो सकती है। यह स्थिति पार्टी की राजनीतिक पकड़ और भविष्य की संभावनाओं पर गहरा असर डालेगी। यही कारण है कि HAM इस चुनाव को अपनी “करो या मरो” की लड़ाई मान रही है।
मांझी ने हाल ही में पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे हर विधानसभा क्षेत्र में पूरी ताकत झोंकें और दलितों, पिछड़ों तथा गरीब तबके के बीच पार्टी की पकड़ मजबूत करें। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी का मुख्य एजेंडा सामाजिक न्याय और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा है।
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HAM का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 2015 में गठन के बाद पार्टी ने महागठबंधन और NDA दोनों के साथ चुनावी साझेदारी की, लेकिन स्वतंत्र रूप से अपनी पहचान बनाए रखना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। इस बार पार्टी अपने दम पर ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मांझी की पार्टी के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई है। नतीजे तय करेंगे कि HAM बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाए रख पाएगी या फिर छोटे दलों की भीड़ में गुम हो जाएगी।
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