भारतीय सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि अगर 1962 के भारत-चीन युद्ध में वायु सेना का प्रभावी इस्तेमाल किया गया होता, तो चीनी आक्रमण को काफी हद तक धीमा किया जा सकता था। उन्होंने यह टिप्पणी ऐतिहासिक युद्ध के अनुभव और वर्तमान सुरक्षा दृष्टिकोण के संदर्भ में की।
जनरल चौहान ने कहा कि उस समय सुरक्षा स्थिति और युद्ध की तैयारी वर्तमान की तुलना में बहुत अलग थी। "वह दौर अलग था, संसाधनों और तकनीकी क्षमताओं की सीमाएं थीं। उन्होंने यह भी माना कि आधुनिक युद्ध की प्रकृति अब पूरी तरह से बदल गई है। आज के समय में संचार, निगरानी, और तेज़-तर्रार हथियार प्रणालियों ने युद्ध को नई दिशा दी है।
सीडीएस ने कहा कि भारत ने पिछले दशकों में अपनी सैन्य क्षमताओं और रणनीति में कई सुधार किए हैं। “आज, हम अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए अधिक सक्षम और तैयार हैं,” उन्होंने जोर देकर कहा। उनके अनुसार, अनुभव से सीखना और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना किसी भी देश की सुरक्षा नीति के लिए आवश्यक है।
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जनरल चौहान ने यह भी बताया कि वायु सेना की भूमिका केवल हवाई हमले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सेना की गतिशीलता, आपूर्ति श्रृंखला और सामरिक प्रभाव में भी अहम योगदान देती है। उन्होंने कहा कि भविष्य में भारत की वायु शक्ति और अधिक निर्णायक भूमिका निभाएगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि 1962 के युद्ध के अनुभव से ही भारतीय सेना ने अपनी रणनीति और रक्षा तंत्र में सुधार किया, जिससे आज सीमाओं की सुरक्षा और युद्ध क्षमता काफी मजबूत हुई है।
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