असम में नागरिकता निर्धारण से जुड़ी प्रक्रियाओं पर एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दस्तावेजों में मामूली clerical त्रुटियाँ भी लोगों के लिए घातक साबित हो सकती हैं। यह अध्ययन नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) और क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन द्वारा किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में नागरिकता से जुड़े मामलों में कोर्ट और ट्रिब्यूनल अक्सर दस्तावेजों में नाम, उम्र या अन्य छोटी-मोटी असंगतियों को पहचान न साबित करने का आधार मान लेते हैं। नतीजतन, ऐसे कई लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता नहीं मिल पाती।
अध्ययन के अनुसार, ये त्रुटियाँ अक्सर टाइपिंग मिस्टेक, स्पेलिंग गलतियों या दस्तावेज़ तैयार करते समय हुई लापरवाही के कारण होती हैं। लेकिन अदालतें इन्हें गंभीरता से लेते हुए नागरिकता खारिज कर देती हैं। रिपोर्ट ने इसे “fatal errors” करार दिया है, जिसका असर विशेष रूप से उन लोगों पर पड़ता है जो पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
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रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई बार एक ही परिवार के सदस्यों के दस्तावेजों में मामूली अंतर होते हैं, जिससे उन्हें अलग-अलग फैसलों का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों ने कहा कि इस तरह की कठोर व्याख्या न्यायिक प्रणाली में सुधार की मांग करती है ताकि निर्दोष लोग नागरिकता से वंचित न हों।
यह अध्ययन असम में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) प्रक्रिया और विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसलों पर गहन शोध के बाद तैयार किया गया है। इसमें सिफारिश की गई है कि न्यायालयों को ऐसे मामलों में अधिक मानवीय और तार्किक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
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