सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि मृत्युदंड के मामलों में प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा प्रावधानों का उल्लंघन होता है, तो दोषी को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत राहत मांगने का अधिकार है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 32 का उपयोग एक अपवाद स्वरूप होना चाहिए और इसे हर मामले में नियमित रूप से लागू नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मृत्युदंड जैसे गंभीर मामलों में न्यायिक प्रक्रिया का पालन पूरी तरह से होना अनिवार्य है। यदि यह पाया जाता है कि किसी दोषी को सुनवाई के दौरान उचित कानूनी अवसर नहीं मिला, साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं हुआ या प्रक्रिया में गंभीर खामियां रहीं, तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकता है।
अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि अनुच्छेद 32 के व्यापक दायरे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। यह प्रावधान उन मामलों के लिए है जहाँ संवैधानिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ हो, न कि उन मामलों के लिए जहाँ दोषियों द्वारा केवल सज़ा टालने की कोशिश की जा रही हो।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृत्युदंड को अंतिम रूप से लागू करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि न्यायिक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण का पालन सही ढंग से हुआ हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि निष्पक्ष सुनवाई और प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा केवल औपचारिकताएँ नहीं हैं, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार हैं।
इस निर्णय से यह संकेत मिलता है कि मृत्युदंड के मामलों में अदालत संवैधानिक सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है, परंतु अपवाद को नियम में बदलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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