दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि कोई शिक्षित और जागरूक महिला यह जानते हुए भी कि पुरुष पहले से शादीशुदा है, उसके साथ संबंध बनाए रखती है, तो वह बाद में यह नहीं कह सकती कि उसे गुमराह किया गया था।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वयस्कों द्वारा बनाए गए निजी और अंतरंग संबंध उनके अपने निर्णय होते हैं, और ऐसे मामलों में उन्हें भावनात्मक, सामाजिक तथा कानूनी जोखिमों की जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिए। अदालत ने कहा कि यह दावा करना कि किसी को “भ्रमित” किया गया, तब स्वीकार्य नहीं होगा जब व्यक्ति पहले से सच जानता हो और स्वेच्छा से उस रिश्ते में शामिल हो।
यह टिप्पणी अदालत ने उस समय की, जब एक महिला ने आरोप लगाया कि वह एक विवाहित पुरुष द्वारा धोखे में रखी गई। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की परिस्थितियों में कानून का सहारा लेना केवल तभी उचित होगा, जब संबंध बलपूर्वक या बिना सहमति के बने हों। अन्यथा, यह व्यक्तिगत निर्णय का हिस्सा है और इसके परिणामों का सामना स्वयं करना होगा।
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अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में बार-बार आपराधिक आरोप लगाने की प्रवृत्ति न्याय प्रणाली पर बोझ डालती है और असल पीड़ितों के लिए न्याय की प्रक्रिया धीमी करती है।
इस फैसले को सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी और वयस्कों की सहमति आधारित रिश्तों को लेकर न्यायिक रुख को स्पष्ट करता है।
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