हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों ने न्यूजीलैंड से आयात होने वाले सेबों पर आयात शुल्क कम किए जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। बागवानों का कहना है कि प्रस्तावित व्यापार समझौते के तहत न्यूजीलैंड के सेबों पर आयात शुल्क 50 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करना प्रदेश के सेब उद्योग के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होगा और इससे हजारों परिवारों की आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा।
सेब बागवानों ने इस मुद्दे पर राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला को एक ज्ञापन सौंपकर हस्तक्षेप की मांग की है। ज्ञापन में कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सेब उत्पादन की अहम भूमिका है और लाखों लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इस व्यवसाय पर निर्भर हैं। यदि सस्ते आयातित सेब बड़ी मात्रा में भारतीय बाजार में आएंगे, तो स्थानीय किसानों को अपने उत्पाद के उचित दाम नहीं मिल पाएंगे।
यह ज्ञापन मंगलवार (30 दिसंबर 2025) को राज्यपाल को सौंपा गया। बागवानों के इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व शिमला जिले की ठियोग विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक कुलदीप सिंह राठौर ने किया। उन्होंने चिंता जताई कि 2026-27 से आयात शुल्क घटाने का प्रस्ताव लागू होने की स्थिति में हिमाचल के सेब उत्पादकों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता कमजोर हो जाएगी।
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बागवानों का कहना है कि हिमाचल में सेब उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही है। खाद, कीटनाशक, परिवहन और मजदूरी की बढ़ती कीमतों के बीच यदि विदेशी सेब कम दामों पर बाजार में बिकेंगे, तो स्थानीय किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि न्यूजीलैंड जैसे देशों में सेब उत्पादन को सरकारी सब्सिडी और आधुनिक तकनीक का लाभ मिलता है, जिससे वहां के उत्पाद सस्ते पड़ते हैं।
ज्ञापन में राज्यपाल से अपील की गई है कि वे केंद्र सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह करें, ताकि हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों की आजीविका और राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखा जा सके।
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