अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार तनाव के बीच एक नया बयान अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं का केंद्र बन गया है। भारत में तैनात चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने कहा है कि अमेरिका द्वारा लगाए जा रहे अनुचित टैरिफ अब “आर्थिक हथियार” के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं। उनका कहना है कि इन शुल्कों का उद्देश्य विभिन्न देशों से “अत्यधिक कीमत” वसूलना है।
राजदूत ने सुझाव दिया कि भारत और चीन जैसे बड़े उभरते बाजार वाले देशों को इस चुनौती का सामना मिलकर करना चाहिए। उनके अनुसार, अगर दोनों देश सहयोग करें तो न केवल अपने-अपने हितों की रक्षा कर पाएंगे, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी स्थिर कर सकते हैं।
शू फेइहोंग ने जोर देकर कहा कि अमेरिका की यह नीति केवल चीन या भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि कई अन्य देशों को भी इसके कारण आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है। उनका मानना है कि “एकतरफा और संरक्षणवादी” नीतियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर रही हैं और विश्व अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता पैदा कर रही हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और चीन के बीच राजनीतिक और सीमा संबंधी तनाव मौजूद हैं। इसके बावजूद आर्थिक सहयोग का यह प्रस्ताव दोनों देशों को साझा लाभ दिला सकता है। भारत के लिए यह एक कूटनीतिक दुविधा भी है, क्योंकि वह अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी और चीन के साथ आर्थिक संबंधों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है।
यह बयान आने वाले समय में भारत, चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक समीकरणों पर असर डाल सकता है।
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