पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब उस दौर को पीछे छोड़ना चाहती हैं जब उन्होंने टाटा की नैनो परियोजना को राज्य से बाहर कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ी थी। अब, वही ममता बनर्जी टाटा ग्रुप के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन से मुस्कुराते हुए मुलाकात करती दिख रही हैं—साफ संकेत कि उनकी सरकार अब उद्योगों के प्रति रुख बदल रही है।
9 जुलाई को हुई 45 मिनट की बैठक की तस्वीरें सरकार ने खूब साझा कीं। यह ममता बनर्जी और किसी टाटा अधिकारी के बीच पहली औपचारिक उच्चस्तरीय मुलाकात थी, जो ‘सिंगूर आंदोलन’ के बाद संभव हुई है।
मुख्यमंत्री के इस रुख को देखकर यह साफ है कि टीएमसी सरकार अब रोजगार और उद्योगों को अपने चौथे कार्यकाल की संभावनाओं से जोड़कर देख रही है। टाटा समूह के राज्य में निवेश बढ़ाने पर चर्चा हुई, जिसमें विशेष रूप से बंगाल को एक उद्योग-हितैषी राज्य के रूप में पेश करने की बात की गई।
सरकार अब इस साल दुर्गा पूजा के बाद एक नया ‘बिजनेस एंड इंडस्ट्री कॉन्क्लेव’ आयोजित करेगी। साथ ही, 2026 चुनाव से पहले एक और बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट भी हो सकता है।
इस समय बंगाल में टाटा समूह की उपस्थिति मुख्यतः टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के ज़रिये है, जिसके 54,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं। टाटा स्टील, टाटा हिताची और होटल सेक्टर में भी उनकी मौजूदगी है। ये निवेश अधिकतर वामपंथी शासन काल से जुड़े हैं, कुछ विस्तार टीएमसी के दौरान हुए।
राज्य सरकार अब स्टील, जेम्स-ज्वेलरी, आईटी, खाद्य प्रसंस्करण, टूरिज़्म, वस्त्र, चमड़ा, दवाइयों और चिकित्सा उपकरण जैसे क्षेत्रों को राजस्व और रोजगार के लिए केंद्र में ला रही है।
हालांकि, इस बदलाव का एक और पहलू है—मार्च में सरकार ने 1993 से दी गई तमाम उद्योगों को प्रोत्साहन देने वाली स्कीम्स को खत्म कर दिया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि अब राज्य का पैसा सामाजिक कल्याण योजनाओं में लगेगा, न कि उद्योगों को छूट देने में। लेकिन इससे कई कंपनियां नाराज़ हैं। नुवोको कंपनी ने तो इसे हाई कोर्ट में चुनौती भी दी है।
इस बीच बीजेपी और विपक्षी दल ममता सरकार की आलोचना कर रहे हैं। अमित शाह ने राज्य की अर्थव्यवस्था को गिरते ग्राफ वाला बताया, तो सीपीएम का कहना है कि यह सब चुनावी दिखावा है। उधर, ममता बनर्जी ने विपक्ष के आरोपों को "झूठ का पुलिंदा" करार देते हुए कहा कि बंगाल एमएसएमई सेक्टर में देश में नंबर वन है।
बंगाल की औद्योगिक तस्वीर अभी मिलीजुली है, लेकिन ममता बनर्जी अब स्पष्ट रूप से संकेत दे रही हैं कि 15 साल बाद भी यदि लोगों को लुभाना है, तो ‘मां माटी मानुष’ के साथ अब ‘मूल्यवर्धन’ और ‘विकास’ की भी बात करनी होगी।