आदिवासी मंत्रालय ने निकोबार परियोजना मामले से अलग होने की जताई इच्छा
आदिवासी कार्य मंत्रालय ने कोलकाता हाई कोर्ट से कहा कि निकोबार परियोजना मामले में उसकी प्रतिवादी भूमिका न बने, क्योंकि वन अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का कार्य है।
कोलकाता उच्च न्यायालय में चल रहे निकोबार परियोजना से जुड़े मामले में आदिवासी कार्य मंत्रालय ने खुद को पक्षकार बनाए रखने पर आपत्ति जताई है। मंत्रालय ने अदालत को बताया कि वह इस मामले का प्रतिवादी नहीं होना चाहता और उसे “सूची से हटा दिया जाए”।
यह मामला वन अधिकार अधिनियम (FRA) के प्रावधानों से जुड़ा है, जिसके नोडल मंत्रालय के रूप में आदिवासी कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी मानी जाती है। लेकिन मंत्रालय ने दलील दी है कि इस अधिनियम के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की है, न कि केंद्र के मंत्रालय की। ऐसे में, निकोबार द्वीप समूह से जुड़ी इस परियोजना पर उसके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष दायित्व नहीं बनता।
निकोबार परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण और बुनियादी ढांचे के विकास की योजना है, जिस पर पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह परियोजना न केवल पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित करेगी, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों पर भी असर डालेगी।
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अदालत में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासियों के वनाधिकार सुरक्षित रहें। लेकिन मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वह नीति निर्माण स्तर पर अधिनियम का नोडल प्राधिकरण है, जबकि इसके क्रियान्वयन और निगरानी की जिम्मेदारी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की है।
इस बयान से संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार निकोबार परियोजना के मामले में अपनी सीधी भूमिका से दूरी बनाना चाहती है। अदालत अब इस पर विचार करेगी कि मंत्रालय को सूची से हटाया जाए या नहीं।
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