पूर्व नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सामाजिक पूंजी में विभाजन से सावधान रहने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ते मतभेद और विभाजनकारी प्रवृत्तियां आर्थिक विकास की गति को बाधित कर सकती हैं। उनका मानना है कि भारत को एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाना होगा, ताकि सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
इसके साथ ही उन्होंने निजी क्षेत्र की भूमिका को और सशक्त बनाने का आह्वान किया। उनका कहना है कि सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए भारत को केवल सरकारी पहलों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि निजी निवेश और उद्यमशीलता को भी बढ़ावा देना चाहिए।
पुस्तक के सह-लेखक ईशान जोशी ने चीन के संदर्भ में कहा कि यदि भारत चीन के उदय को सही तरीके से नहीं समझ पाया, तो वह ऐतिहासिक संदर्भों से कट जाएगा और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि विश्व व्यवस्था तेजी से बदल रही है और भारत को वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनानी होंगी।
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विशेषज्ञों का मानना है कि मजबूत सामाजिक एकता और सक्रिय निजी क्षेत्र के बिना ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य पाना कठिन होगा। इसके लिए शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत बताई गई।
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