राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पंचायत राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए उम्मीदवारों पर शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्य शर्त को फिर से लागू करने पर विचार कर रही है। ये चुनाव वर्ष 2026 में प्रस्तावित हैं। इससे पहले वर्ष 2019 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस नियम को समाप्त कर दिया था।
उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की यह व्यवस्था सबसे पहले वर्ष 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल के दौरान लागू की गई थी। उस समय इस फैसले का कांग्रेस पार्टी ने कड़ा विरोध किया था और इसे 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा भी बनाया गया था।
भाजपा सरकार का मानना है कि जनप्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शिक्षा स्तर तय करने से प्रशासनिक कार्यों की समझ बेहतर होगी और पंचायतों व स्थानीय निकायों के कामकाज में पारदर्शिता और दक्षता आएगी। सरकार के अनुसार, योजनाओं के क्रियान्वयन, वित्तीय मामलों की निगरानी और डिजिटल प्रक्रियाओं को समझने में शिक्षित प्रतिनिधि अधिक सक्षम हो सकते हैं।
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हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक बहस तेज होने की संभावना है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का तर्क रहा है कि शैक्षणिक योग्यता की शर्त लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित करती है और ग्रामीण व वंचित वर्गों के लिए चुनाव लड़ने के अवसर कम कर देती है। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि बनने के लिए शिक्षा से अधिक ज़मीनी अनुभव और जनता से जुड़ाव महत्वपूर्ण होना चाहिए।
भाजपा सरकार फिलहाल इस मुद्दे पर विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रही है, जिसमें सामाजिक प्रभाव, कानूनी पक्ष और चुनावी प्रक्रियाओं से जुड़े पहलू शामिल हैं। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो 2026 के पंचायत और शहरी निकाय चुनावों में उम्मीदवारों को निर्धारित न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता पूरी करनी होगी।
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