कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस वर्ष मैसूर दशहरा का उद्घाटन बानू मुश्ताक को करने के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए गए आमंत्रण पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
दरअसल, कुछ याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाया था कि सरकार ने किसी ऐसे व्यक्ति को दशहरा के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया है, जो हिंदू देवी-देवताओं की पूजा में आस्था नहीं रखते। दशहरा का त्योहार परंपरागत रूप से देवी के पूजा-अर्चना के साथ प्रारंभ होता है, और यह हिंदू संस्कृति और धार्मिक रीति-रिवाजों का प्रतीक माना जाता है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इस प्रकार का आमंत्रण धार्मिक परंपराओं का अपमान करने जैसा है और इसे रोकने के लिए न्यायालय को कदम उठाना चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को इस तरह के आयोजनों में निर्णय लेने का अधिकार है और न्यायालय केवल कानूनी उल्लंघन की स्थिति में ही हस्तक्षेप कर सकता है।
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कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और सरकार का निर्णय सम्माननीय और वैधानिक प्रक्रिया के तहत लिया गया माना जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला राज्य और धार्मिक आयोजनों में प्रशासनिक स्वतंत्रता तथा न्यायालय की सीमा के बीच संतुलन को उजागर करता है। सरकार की यह पहल सामाजिक समावेशिता और विविधता के दृष्टिकोण से भी देखी जा रही है।
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