मानसिक रूप से विकलांग दुष्कर्म पीड़िता की मौत ने सुप्रीम कोर्ट को पीड़ित मुआवजा प्रणाली की गंभीर खामियों की ओर ध्यान दिलाया है। यह पीड़िता, जो गंभीर अपराध की शिकार थी, तीन महीने पहले इसलिए चल बसी क्योंकि उसे अब तक पूरा मुआवजा नहीं मिल पाया था।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि देश में पीड़ित मुआवजे के बारे में जागरूकता की भारी कमी है। अदालत ने पाया कि कई बार विशेष अदालतें या सत्र अदालतें अपराध पीड़ितों को मुआवजा देने का निर्देश देना ही भूल जाती हैं, जिसके कारण पीड़ितों को खुद राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) या अन्य माध्यमों से मुआवजा मांगना पड़ता है।
पीठ ने कहा, “हमने पाया है कि अपराध पीड़ितों को मुआवजा देने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि निचली अदालतों द्वारा ऐसा कोई आदेश पारित ही नहीं किया जाता। परिणामस्वरूप, पीड़ितों को स्वयं आवेदन देना पड़ता है। साथ ही, इस प्रक्रिया के बारे में भी पर्याप्त जानकारी नहीं है।”
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अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि पीड़ितों को उचित और समयबद्ध आर्थिक सहायता मिलना उनके न्याय के अधिकार का हिस्सा है। केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी न्यायाधीशों को इस प्रावधान के बारे में पर्याप्त प्रशिक्षण और मार्गदर्शन मिले।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को “गंभीर मानवीय चिंता” बताते हुए सभी राज्यों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है कि वे अपने-अपने पीड़ित मुआवजा योजनाओं के तहत किस तरह से पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित कर रहे हैं।
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