सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा कि अब समय आ गया है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि पिछले कुछ वर्षों में आपराधिक मानहानि के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है और इसे राजनीतिक व व्यक्तिगत स्तर पर दबाव बनाने के लिए एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि मानहानि एक निजी विवाद का विषय है और इसे अपराध की श्रेणी में रखना उचित नहीं है। उनका कहना था कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की छवि खराब करता है, तो यह मामला दीवानी कानून के अंतर्गत निपटाया जा सकता है। लेकिन इसे आपराधिक कानून के दायरे में लाना कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि “क्या किसी निजी व्यक्ति द्वारा दूसरे निजी व्यक्ति की मानहानि को अपराध माना जा सकता है, जबकि इसमें सार्वजनिक हित की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती?” न्यायाधीश का मानना है कि संविधान में दिए गए अधिकारों की रक्षा और लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिए इस विषय पर पुनर्विचार आवश्यक है।
और पढ़ें: प्रस्तावना को देखिए : बानू मुश्ताक के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में मानहानि कानून का राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ अक्सर दुरुपयोग किया जाता है। इस कानून का उपयोग आलोचना को दबाने और असहमति की आवाज को कुचलने के लिए होता रहा है। कई देशों में मानहानि को अपराध की बजाय दीवानी विवाद के रूप में ही देखा जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस मुद्दे पर नए विमर्श की शुरुआत कर सकती है और आने वाले समय में मानहानि कानून में बड़े बदलाव की संभावना को जन्म दे सकती है।
और पढ़ें: दिल्ली दंगे मामला: सुप्रीम कोर्ट ने उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका पर सुनवाई 22 सितंबर तक टाली