सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना की उस नीति को रद्द कर दिया है, जो महिला अधिकारियों की नियुक्ति को जज एडवोकेट जनरल (JAG) पदों पर सीमित करती थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यपालिका (Executive) किसी भी नीति या प्रशासनिक निर्देश के माध्यम से केवल पुरुष अधिकारियों के लिए आरक्षण नहीं बना सकती और न ही संख्या सीमित कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संविधान के तहत समान अवसर का अधिकार सभी को है, और सेना में भी इस सिद्धांत का पालन अनिवार्य है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि किसी भी लिंग-आधारित भेदभाव को नीति के रूप में लागू करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
याचिका में दावा किया गया था कि सेना की मौजूदा नीति महिला अधिकारियों को JAG शाखा में नियुक्ति के समान अवसर से वंचित करती है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह भेदभाव सेना के आधुनिकीकरण और समानता की भावना के विपरीत है।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “कार्यपालिका नीति या प्रशासनिक निर्देश के माध्यम से संख्या को सीमित नहीं कर सकती या पुरुष अधिकारियों के पक्ष में आरक्षण नहीं कर सकती, खासकर जब यह अवसर के अधिकार से जुड़ा हो।”
इस फैसले के बाद महिला अधिकारियों के लिए JAG पदों पर नियुक्ति का रास्ता पूरी तरह खुल गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय सेना में लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा और अधिक महिलाओं को कानूनी शाखा में सेवा का अवसर प्रदान करेगा।
यह आदेश सेना में महिलाओं की भूमिका को और सशक्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जो आने वाले समय में उनकी भागीदारी को और बढ़ाएगा।
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