पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इससे देश के इतिहास में “सबसे बड़ा मतदाता निष्कासन” हो सकता है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया उन राज्यों में मतदाताओं की संख्या कम करने का साधन बन रही है, जहाँ भाजपा को अपने समर्थन को लेकर निश्चितता नहीं है। कई बुद्धिजीवियों ने इसे विवादित NRC और CAA को “पीछे के दरवाज़े से लागू करने जैसा” बताया।
राजनीतिक विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव तथा अर्थशास्त्री परकाला प्रभाकर शनिवार (22 नवंबर 2025) को कोलकाता में सिविल सोसाइटी समूहों — द एजुकेशनिस्ट्स' फोरम, वेस्ट बंगाल और देश बचाओ गण मंच — द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि SIR, भाजपा द्वारा “राज्य मशीनरी के दुरुपयोग” का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बड़े पैमाने पर वोटरों को सूची से बाहर करना है।
योगेंद्र यादव ने कहा, “पहले दिन से ही मैंने कहा है कि SIR हमेशा से बंगाल के लिए था। बिहार सिर्फ परीक्षण स्थल था… SIR एक ‘वोटबंदी’ अभ्यास है, जो भारत की सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार व्यवस्था को कमजोर करेगा।” उनका आरोप है कि इस प्रक्रिया से लाखों वैध मतदाताओं को संदेह के दायरे में लाकर सूची से हटाया जा सकता है।
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कार्यकर्ताओं का दावा है कि SIR प्रक्रिया न केवल अत्यधिक जटिल है, बल्कि इसे ऐसे समय में लागू किया जा रहा है जब चुनाव नज़दीक हैं, जिससे इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से राजनीतिक प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि यह अभ्यास लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है और राज्य में चुनावी संतुलन को बदलने का प्रयास है।
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