मध्य प्रदेश अपनी खेल नीति में बड़े बदलाव करने जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का पलायन रोकना और उन्हें सम्मानजनक पहचान व सुरक्षित करियर उपलब्ध कराना है। राज्य के खेल और युवा कल्याण मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि ओलंपिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को सीधे गजटेड अधिकारी बनाया जाएगा।
सारंग के अनुसार, फिलहाल विक्रम पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों को तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरी दी जाती है, लेकिन कई बार यह नियम योग्य खिलाड़ियों को आगे बढ़ने से रोक देता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि खिलाड़ियों को ‘चपरासी’ जैसी पदों पर रखने का आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है।
उन्होंने बताया कि हॉकी खिलाड़ी विवेक सागर प्रसाद को तत्कालीन मुख्यमंत्री की विशेष घोषणा के अनुसार DSP बनाया गया था। इसी तरह अन्य खिलाड़ियों की फाइलें क्लास-II गजटेड पदों के लिए प्रक्रिया में हैं। नई नीति इन्हीं निर्देशों को औपचारिक रूप देगी, ताकि अंतरराष्ट्रीय मेडल लाने वाले खिलाड़ियों को सीधे उच्च पद मिल सकें।
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इस सुधार की आवश्यकता तब और स्पष्ट हुई जब विश्व स्तरीय निशानेबाज ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर ने राज्य सरकार के अधूरे वादों पर सार्वजनिक नाराजगी जताई और घोषणा की कि वह अब मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे।
वर्तमान प्रणाली की समस्या यह है कि 2021 के नियमों के मुताबिक केवल विक्रम पुरस्कार विजेताओं को ही सरकारी नौकरी मिलती है, जिससे कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी उपेक्षित रह जाते हैं। राज्य की खेल नीति 2005 के बाद से अपडेट नहीं हुई है।
वहीं हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्य राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतने वालों को सरकारी नौकरी देते हैं। इसके विपरीत मध्य प्रदेश केवल नकद पुरस्कार देता है—6 लाख (स्वर्ण), 4 लाख (रजत) और 3 लाख (कांस्य)।
इस असमानता का असर हाल के उत्तराखंड नेशनल गेम्स में दिखा, जहां 120 मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अन्य राज्यों से खेले और 68 ने पदक जीते। इससे MP को भारी पदक नुकसान हुआ। 2020 से अब तक सिर्फ 37 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी मिली है।
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