राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक (National Sports Governance Bill) को लेकर देश के विभिन्न खेल महासंघों में गहरा मतभेद सामने आया है। कई महासंघों ने नए कानून का समर्थन किया है, जबकि कुछ ने इसे खेलों की स्वायत्तता के लिए खतरा बताया है।
इस विधेयक का उद्देश्य खेल संगठनों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को मजबूत करना है। इसमें चुनाव प्रक्रिया में बदलाव, खिलाड़ियों के हितों की सुरक्षा और वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। हालांकि, कुछ महासंघों का कहना है कि इससे सरकार का खेल संगठनों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण बढ़ जाएगा और उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने चेतावनी दी है कि यह विधेयक खेलों पर सरकार का “डिफैक्टो नियंत्रण” स्थापित कर देगा। उनका कहना है कि खेल संगठनों को अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने का अधिकार होना चाहिए, और सरकार को केवल नियामक भूमिका तक सीमित रहना चाहिए।
और पढ़ें: तेलंगाना पुलिस के डीएसपी मोहम्मद सिराज ने 23 विकेट झटक भारत को दिलाई ऐतिहासिक जीत
वहीं, विधेयक के समर्थकों का कहना है कि हाल के वर्षों में खेल संघों में भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी और खिलाड़ियों के साथ अन्याय जैसी समस्याएं सामने आई हैं। ऐसे में एक मजबूत कानूनी ढांचा जरूरी है जिससे खेल प्रशासन को सही दिशा मिल सके और खिलाड़ियों का हित सुरक्षित हो।
केंद्रीय खेल मंत्रालय का कहना है कि यह विधेयक किसी भी तरह से खेल संगठनों की स्वायत्तता खत्म नहीं करेगा बल्कि इसे सुदृढ़ करेगा। सरकार का उद्देश्य खेलों में सुधार लाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रदर्शन को बेहतर बनाना है।
और पढ़ें: इंग्लैंड में भारतीय महिला टीम की डबल जीत क्यों है खास