रुपया सोमवार (1 दिसंबर 2025) को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 8 पैसे फिसलकर 89.53 (प्रोविजनल) पर बंद हुआ। यह गिरावट बाजार में डॉलर की मजबूत मांग और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच दर्ज की गई। विदेशी मुद्रा कारोबारियों के अनुसार, रुपये की कमजोरी का मुख्य कारण बढ़ता व्यापार घाटा, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी और सीमित केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप है।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 89.45 पर खुला, लेकिन ट्रेडिंग के दौरान कमजोरी बढ़ती गई और यह 89.79 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। यह पिछले बंद भाव से 34 पैसे गिरावट को दर्शाता है। इससे पहले 21 नवंबर को रुपये ने 89.66 का जीवनकाल का सबसे निचला स्तर छुआ था।
HDFC सिक्योरिटीज के सीनियर रिसर्च विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा कि आने वाले दिनों में भी रुपये पर दबाव बना रह सकता है, क्योंकि डॉलर की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन जारी रहने की संभावना है। उनके अनुसार, डॉलर-रुपया स्पॉट रेट के लिए 89.95 पर रेज़िस्टेंस और 89.30 पर सपोर्ट है।
डॉलर इंडेक्स 0.17% बढ़कर 99.28 पर कारोबार कर रहा था, जो डॉलर को अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मजबूत बनाता है। वहीं ब्रेंट क्रूड वायदा 1.86% की बढ़त के साथ 63.55 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
घरेलू बाजारों में भी हल्की गिरावट दर्ज की गई। सेंसेक्स 64.77 अंक गिरकर 85,641.90 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 27.20 अंक फिसलकर 26,175.75 पर आ गया। विदेशी निवेशकों ने शुक्रवार को 3,795.72 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
इसके अलावा, नवंबर में भारत के विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधि नौ माह के निचले स्तर पर आ गई, HSBC PMI 59.2 से घटकर 56.6 पर पहुंच गया। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के साथ व्यापार तनाव और संभावित समझौते में देरी से निवेशकों में सतर्कता बढ़ी है।