भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे की बड़ी गिरावट के साथ 88.47 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ। विदेशी मुद्रा बाजार में यह अब तक का सबसे कमजोर स्तर माना जा रहा है।
व्यापारियों ने बताया कि शुरुआती कारोबार में रुपये में हल्की मजबूती देखी गई थी, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-अमेरिका व्यापार संधि पर सकारात्मक संकेत दिए थे। हालांकि, डॉलर की मांग और वैश्विक आर्थिक दबावों के कारण रुपये की कमजोरी फिर बढ़ गई।
वित्तीय विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर की मजबूती और विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पूंजी निकासी ने रुपये पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इसके अलावा, कच्चे तेल की ऊंची कीमतें और वैश्विक बाजारों में अस्थिरता ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया है।
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विशेषज्ञों के अनुसार, निकट भविष्य में रुपये की स्थिरता अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों, वैश्विक मुद्रास्फीति के रुझान और भारत के व्यापार संतुलन पर निर्भर करेगी। अगर डॉलर की मांग इसी तरह बनी रहती है, तो रुपये पर और दबाव देखने को मिल सकता है।
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने यह भी बताया कि निवेशक इस समय सतर्क दृष्टिकोण अपना रहे हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक हालात और व्यापार से जुड़ी अनिश्चितताएं बाजार पर असर डाल रही हैं। भारत-अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते से अस्थायी राहत की उम्मीद है, लेकिन मौजूदा वैश्विक परिस्थितियाँ रुपये की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बनाए हुए हैं।
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