हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने एक राष्ट्रीय अध्ययन में पाया कि चावल और गेहूं दोनों खाने वाले लोगों में डायबिटीज़ और मोटापे पर समान प्रभाव दिखा। इससे यह मिथक खारिज हुआ कि गेहूं चावल से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक है। ICMR के अनुसार, कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को पांच प्रतिशत घटाकर प्रोटीन से बदलना गैर-संचारी रोग जैसे मोटापा, उच्च रक्तचाप और डायबिटीज़ को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में कुल प्रोटीन सेवन पर्याप्त नहीं है, औसतन केवल 12 प्रतिशत दैनिक कैलोरी में ही प्रोटीन शामिल होता है। इसमें उच्चतम सेवन उत्तर-पूर्वी राज्यों में 14 प्रतिशत पाया गया, जिसमें से केवल 9 प्रतिशत प्रोटीन पौधों से आता है। विशेषज्ञों ने प्रोटीन बढ़ाने के लिए पौधों और अंडों के माध्यम से सेवन करने की सलाह दी, और लाल मांस से परहेज करने की चेतावनी दी। उत्तर-पूर्वी राज्यों में चावल की मात्रा अधिक होने के बावजूद पर्याप्त प्रोटीन मिलने से मोटापा और डायबिटीज़ नियंत्रण में हैं।
साथ ही, शोधकर्ताओं ने चेताया कि अत्यधिक प्रोटीन का सेवन गुर्दे की सेहत पर असर डाल सकता है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि चावल और गेहूं की पॉलिशिंग ने उन्हें पोषक तत्वों और फाइबर से खाली कर दिया है। आज जो चावल हम खाते हैं, वह मुख्यतः स्टार्च है। क्षेत्रीय भिन्नताएँ भी सामने आईं—दक्षिण, पूर्व और उत्तर-पूर्व में सफेद चावल मुख्य आहार है, जबकि उत्तर और मध्य भारत में गेहूं प्रमुख है। कर्नाटक में मिलेट्स का सेवन सबसे अधिक है। अध्ययन ने अत्यधिक शुगर, विशेषकर अतिरिक्त शुगर, को मोटापे का प्रमुख कारण बताया और 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुगर का सेवन सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया।
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