पंजाब के होशियारपुर जिले में हाल ही में संपन्न जिला परिषद चुनावों में राजनीतिक दलों के प्रदर्शन और सीटों की गणना पर ही अधिकतर चर्चा केंद्रित रही। हालांकि, अंतिम मतगणना आंकड़ों पर गहराई से नजर डालने पर एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण रुझान सामने आया है—खारिज किए गए मतपत्रों और नोटा (नन ऑफ द एबव) मतों की बड़ी संख्या।
जिला परिषद चुनावों की अंतिम मतगणना रिपोर्ट के अनुसार, होशियारपुर जिले के 25 जिला परिषद क्षेत्रों में कुल 4,41,915 मत डाले गए। इनमें से 14,473 मत खारिज कर दिए गए, जबकि 2,817 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। इस प्रकार कुल 17,290 मत किसी भी प्रत्याशी के खाते में नहीं जुड़ सके। जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यह संख्या इतनी बड़ी है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
रिपोर्टों के मुताबिक, ये खारिज मत और नोटा वोट नतीजों के लिहाज से ‘मौन कारक’ बनकर उभरे हैं। खारिज मतों की अधिक संख्या यह संकेत देती है कि मतपत्र भरने की प्रक्रिया, मतदाताओं की जागरूकता या मतदान प्रणाली में कहीं न कहीं सुधार की आवश्यकता है। वहीं, नोटा मतों की मौजूदगी यह दर्शाती है कि मतदाताओं का एक वर्ग उपलब्ध विकल्पों से असंतुष्ट था और उसने किसी भी प्रत्याशी को समर्थन न देने का फैसला किया।
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चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि यदि खारिज मतों और नोटा को मिलाकर देखे जाएं, तो यह आंकड़ा कई सीटों पर जीत-हार के अंतर से अधिक हो सकता है। इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या बेहतर प्रशिक्षण, स्पष्ट दिशा-निर्देश और मतदाता शिक्षा अभियानों के जरिए इन मतों को वैध मतों में बदला जा सकता है।
कुल मिलाकर, होशियारपुर जिला परिषद चुनावों में खारिज मतों और नोटा की संख्या केवल एक सांख्यिकीय तथ्य नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मजबूत बनाने के लिए एक अहम संकेत के रूप में सामने आई है।
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