सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 दिसंबर 2025) को ‘कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी’ (CSR) की व्याख्या करते हुए कहा कि इसमें पर्यावरण की सुरक्षा भी निहित रूप से शामिल होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी कॉर्पोरेशन की कानूनी इकाई का बुनियादी कर्तव्य समाज के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में पर्यावरण की रक्षा करना है।
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिंह और अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि कॉर्पोरेट कर्तव्य केवल शेयरधारकों के हित की रक्षा करने तक सीमित नहीं रह सकता। इसके बजाय, यह पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, जिसमें हम सभी निवास करते हैं। इसलिए, सामाजिक जिम्मेदारी की कॉर्पोरेट परिभाषा में पर्यावरणीय जिम्मेदारी निहित रूप से शामिल होनी चाहिए।
कोर्ट ने विशेष रूप से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसे संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि गैर-नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक जो बस्टर्ड के प्राकृतिक आवास के पास स्थित हैं, वे इसके निवास के “अतिथि” हैं और इन्हें इन-सीटू (स्थानीय) और एक्स-सीटू (स्थानांतरित) संरक्षण के लिए योगदान देना होगा।
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फैसले में यह भी कहा गया कि कॉर्पोरेट्स को सिर्फ मुनाफा कमाने या शेयरधारकों की सुरक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उनका कर्तव्य समाज और पर्यावरण के व्यापक हितों की रक्षा करना भी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से CSR की अवधारणा को व्यापक किया है और इसे पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ जोड़कर कॉर्पोरेट कार्यों के लिए एक नया मानक स्थापित किया है।
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