यूरोप में शरण की बढ़ती मांगों और आप्रवासन संकट को लेकर जर्मनी अब सिर्फ 'ब्रेकमैन' नहीं, बल्कि 'लोकमोटिव' बनने का दावा कर रहा है। जर्मनी के गृह मंत्री अलेक्ज़ेंडर डोब्रिंड्ट ने शुक्रवार को दक्षिणी जर्मनी में फ्रांस, पोलैंड, ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य और डेनमार्क के समकक्षों तथा यूरोपीय संघ के प्रवासन आयुक्त मैग्नस ब्रुन्नर के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की।
इस बैठक में यूरोपीय संघ की शरण नीति को "और अधिक सख्त और कठोर" बनाने की मांग की गई। पांच पन्नों के एक साझा वक्तव्य में उन्होंने "रिटर्न हब्स" बनाने, तीसरे देशों में शरण प्रक्रियाएं शुरू करने और अफगानिस्तान व सीरिया जैसे देशों में निर्वासन को सामान्य नीति बनाने का प्रस्ताव रखा।
इन सभी प्रस्तावों को लागू करने के लिए ब्रसेल्स की मंज़ूरी जरूरी होगी।
डोब्रिंड्ट ने कहा, "हम यह दिखाना चाहते थे कि जर्मनी अब यूरोपीय प्रवासन नीतियों में ब्रेक लगाने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अब वह नेतृत्व कर रहा है।"
बैठक से कुछ घंटे पहले ही जर्मनी ने 81 अफगान नागरिकों को निर्वासित कर यह संकेत दे दिया कि वह इस मुद्दे को लेकर गंभीर है। इन निर्वासनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे "मानवाधिकारों का उल्लंघन" बताया और अफगानिस्तान की स्थिति को "विनाशकारी" कहा।
जर्मनी ने 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अफगानिस्तान में निर्वासन बंद कर दिया था, लेकिन 2023 में पूर्व चांसलर ओलाफ शोल्ज़ की सरकार ने 28 दोषी अफगानों को देश निकाला दिया।
अब वर्तमान चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने कहा कि जिन 81 अफगानों को वापस भेजा गया, वे सभी कानूनी रूप से शरण के लिए अयोग्य पाए गए थे और उनके पास अब कोई निवास अनुमति नहीं थी।
बावेरिया राज्य के गृह मंत्री ने जानकारी दी कि निर्वासित लोगों में से 15 हत्या, बलात्कार और अन्य गंभीर अपराधों के दोषी थे। वहीं बाडेन-वुर्टेमबर्ग राज्य ने कहा कि वहां से भेजे गए 13 अफगानों को हत्या, नशीली दवाओं से जुड़े अपराध और आगजनी जैसे गंभीर अपराधों में सजा मिल चुकी थी।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने इन निर्वासनों की आलोचना करते हुए अफगान नागरिकों की जबरन वापसी पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में लौटने वाले लोगों को गंभीर खतरों का सामना करना पड़ सकता है।