ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में लाया गया वह प्रस्ताव वापस ले लिया है, जिसमें परमाणु स्थलों पर किसी भी तरह के हमले को प्रतिबंधित करने की मांग की गई थी। बताया जा रहा है कि यह कदम अमेरिका के दबाव के चलते उठाया गया। इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हलचल मचा दी है, क्योंकि यह मसला सीधे ईरान, अमेरिका और इज़रायल के बीच तनाव से जुड़ा है।
गौरतलब है कि इज़रायल ने जून में ईरान के कई परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया था। इज़रायल का कहना है कि वह तेहरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दे सकता और उसे आशंका है कि इस्लामिक रिपब्लिक (ईरान) अपने परमाणु कार्यक्रम में निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।
अमेरिका लंबे समय से इज़रायल के सुरक्षा हितों का समर्थन करता रहा है। माना जा रहा है कि वाशिंगटन ने ईरान पर प्रस्ताव वापस लेने के लिए दबाव डाला, ताकि इज़रायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ा संदेश न जाए। इस कदम ने एक बार फिर मध्य पूर्व की राजनीति और सुरक्षा संतुलन पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ईरान ने प्रस्ताव कायम रखा होता, तो उसे रूस, चीन और कई विकासशील देशों का समर्थन मिल सकता था। लेकिन प्रस्ताव वापसी से यह संदेश गया है कि अमेरिका की वैश्विक कूटनीतिक ताकत अब भी निर्णायक भूमिका निभाती है।
फिलहाल, ईरान ने आधिकारिक बयान में कहा है कि वह अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं इज़रायल ने संकेत दिए हैं कि यदि आवश्यक हुआ तो वह आगे भी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा।
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