लंदन में हुए एक बड़े प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया, जिसमें पुलिस ने 425 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। यह प्रदर्शन प्रतिबंधित संगठन पैलेस्टाइन एक्शन के समर्थन में आयोजित किया गया था। प्रदर्शनकारियों ने संसद और सरकारी कार्यालयों के बाहर रैली की, जहां कई लोगों ने “फ्री फिलिस्तीन” और “हम नरसंहार का विरोध करते हैं” जैसे नारे लगाए।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्रदर्शन शुरू में शांतिपूर्ण था, लेकिन कुछ समूहों ने आक्रामक रुख अपनाते हुए बैरिकेड्स तोड़े और पुलिस पर वस्तुएं फेंकी। इसके बाद पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया और सैकड़ों लोगों को हिरासत में ले लिया।
लंदन मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोगों पर कानून-व्यवस्था भंग करने, हिंसा फैलाने और अवैध संगठन का समर्थन करने के आरोप लगाए गए हैं। पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया कि शहर की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाए गए।
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इस घटना ने ब्रिटेन की राजनीति और नागरिक समाज में बहस छेड़ दी है। मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि जनता को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है और सरकार को असहमति की आवाज दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वहीं, सरकार समर्थकों का कहना है कि प्रतिबंधित संगठन के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं है।
विश्लेषकों का मानना है कि गाज़ा संघर्ष और फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर यूरोप में जनभावना तेजी से बढ़ रही है। लंदन जैसे शहरों में होने वाले ऐसे विरोध प्रदर्शन आने वाले समय में और अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
यह घटना इस बात का उदाहरण है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय राजनीति और सुरक्षा व्यवस्था कितनी संवेदनशील हो सकती है।
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